बसंत
चुर्र..र्र...र्र.....चूं... धाड़...!!!! दरवाजा पीछे से आकर भिड़ा तो खोपड़ी टनटना गई। .... पलटकर देखा तो सांकल की ताल पर दरवाजा हौले हौले झूम रहा था।.... मैंने तमक कर पूछा कौन है ??? कोई फुसफुसाया, फागुन की बधाई!!
चुर्र..र्र...र्र.....चूं... धाड़...!!!! दरवाजा पीछे से आकर भिड़ा तो खोपड़ी टनटना गई। .... पलटकर देखा तो सांकल की ताल पर दरवाजा हौले हौले झूम रहा था।.... मैंने तमक कर पूछा कौन है ??? कोई फुसफुसाया, फागुन की बधाई!!
अब समझा ! यह फगुनहटे की चपत थी। .... मगर यह भी क्या तरीका हुआ भई, देखते नहीं भेजा हिल गया। फागुनी वातास ने थ्रिरक कर कहा .... इब तो नुं ही चलेगी... !!!! क्या तुमसे अपाइनटमेंट लिया जाए. मेल भेजी जाए या टेक्स्ट मैसेज पठाया जाए।...बड़े आए तरीका बताने वाले!!!!. मैने अपने एक चपत मारी और कहा सॉरी।
फागुन की अपनी ठसक है वह तो इसी तरह आता है बिंदास, उखाड़ता पछाड़ता, वर्जनायें तोड़ता। न चैत वैशाख सी खर, न पूस माघ की झुर-झुर। न गिरजा देवी के मंद राग जैसी सर्दियाई पुरवाई और न ही पछांह के संगीत जैसी झकोरती गरम पछुआ। फगुनहटा तो मनमाना है। छूकर निकल जाए पता भी न चले तो कभी कोई झकोर दरवज्जा सर पर दे मारे। दअसल पूरा फागुन ही बड़ा अनप्रिडिक्टबल है। सुबह सुहाती धूप, दोपहर तक भीतर चिकोटी काटने लगती है। कभी कोई फूल उझक जाता है तो कभी पत्ते झरने लगते है। निरा मनमाना, अलमस्त और सब कुछ इसके ठेंगे (बनारसी और कनपुरिये, ठेंगे की जगह अपना अपना शब्द जोड़ लें) पर।
फगुनहटा कुछ और दरवाजों की सांकल बजाकर लौटा और कान में गा उठा....
घूंघट काए खोलती नइयां, दिखनौसू है मुइंयां....
.... बटेसर महाराज ईसुरी को आलाप रहे थे। .... बूढी ताई बोल उठीं.: . ई डाढ़ीजार बटेसरा पर दिन भर फागुन चढ़ा रहता है। .... देखो तो, बेसरम क्या गा रहा है। मुझे ताई की तिरछी मुस्कराहट दिख रही थी.। लेकिन ‘बेसरम’ बटेसर तो कहीं दूर थे और ढोलक ठोंक रहे थे...
चूमन गलुअन मन ललचावे, झपट उठा लें कइयां,
ईसुर जिनकी आइ दुलैयां बड़े भाग वे सईयां।.........
फागुनी वातास आज पीछे ही लगी है....कार का शीशा ठोंक कर बोली .... पीला पोखर!!! ... मैंने शीशे ने बाहर देखा। सड़क के किनारे छोटे छोटे टुकड़ो में सरसों झूम रही थी। .. फागुनी हवा नाच गई थी पीले पोखर में। इस छोर से उस छोर तक एक लहर सी उठ गई। खेत में एक मकान उगा है, बसंत के बीच वैशाख सा। .. कभी यहां पीला सागर होता था।
अरे वह तो टेसू वाला मोड़ है। .... लाल टहकार टेसू .. अग्नि शिखा सा टेसू। .... तपती ग्रीष्म में गुस्साये को सूरज चिढ़ाता हिम्मती टेसू। लेकिन है कहां वह टेसू परिवार ? ... प्रधानमंत्री की सड़क के लिए शहीद हो गया होगा। टेसू की समाधि पर टायर चक्र टंगा है .... लिखा है ..... “यहां पेंक्चर का काम तसल्लीबक्श होता है।“
फिर किसी का आलाप ।....मैं कान लगा देता हूं।
तोरे नैन मुलक उजियारे, हमे हेरतन मारे
लगा भभूत करो बैरागी, बाबा बना निकारे
कई एक को भिक्षुक कर दओ, कयैक दीन निगारे
कयैक भए फकीर ईसुरी इन बिन्नू के मारे
ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंग..... इस बार फागुनी वातास मोबाइल की कॉल लेकर आई। ... बजट की मीटिंग है, तैयारी नहीं करनी। यह मुआ बजट फागुन में ही क्यों आता है। मौसम बेफिक्री का और काम हिसाब किताब का। एक शून्य का झोल भी जान की आफत। ...
मेरी तंद्रा टूट गई ..... राजकोषीय घाटा!! ..... राम के हाथ कनक पिचकारी !!.... इनकम टैक्स की दरों का क्या !!. अरर कबीरा होली!!.... खर्च का आंकड़ा तो देखो!!!.... हो हो होलक रे!!
... ++++ ##### ?!!!! सब कुछ गड्ड मड्ड ....
बौरा गए हो का ? ... फागुनी सखा ने चलते-चलते चिकोटी काटी।
फागुन में बौराने के लिए भेजा नहीं कलेजा चाहिए।...
गोली मार भेजे में !!!..... होलिका माई की जय !!!
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